Durga Aarti – माँ दुर्गा जी की आरती एवं चालीसा

Durga Aarti पढ़ने से पहले आइये माँ दुर्गा के बारे में पढ़ लेते हैं। माँ तो माँ हैं जो सब की रक्षा करतीं हैं और बुराई को दूर रखती हैं।

माँ दुर्गा हम सब की सदैव रक्षा करतीं हैं । उनके माता, नवदुर्गा, देवी, शक्ति और भगवती जैसे कई नाम हैं। दुर्गा को सर्वोच्च दैवीय शक्ति माना जाता है। वह बुराई के खिलाफ लड़ती है, अंधेरे में रोशनी लाती है और लोगों को शांति और खुशी पाने में मदद करती है। माँ दुर्गा कभी किसी के साथ बुरा नहीं होने देती, जो माँ Durga Aarti गाते हैं, अच्छे कार्य करते हैं उनपर माँ दुर्गा की कृपा दृष्टि बानी रहती हैं।

माँ दुर्गा सबसे शक्तिशाली हैं जो बुराइयों का नाश करती हैं, हम सब जानते हैं माँ ने महिषासुर नामक एक बड़े, बुरे राक्षस को हराया, जिसने बुराई का साथ दिया, जिसने लोगो पर अत्याचार किया। कुछ कहानियों में, दुर्गा भगवान शिव की पत्नी हैं।

सिद्धपीठ जैसे विशेष पवित्र स्थान हैं जहां लोगों का मानना है कि दुर्गा की दिव्य उपस्थिति बहुत मजबूत है। लोग वहां मन्नतें मांगने जाते हैं, उम्मीद करते हैं कि मां दुर्गा उन्हें पूरी करेंगी। दुर्गम और दुर्गमासुर नामक राक्षसों को हराने के बाद माँ दुर्गा को अपना नाम मिला।

पूरे भारत और दुनिया भर में कई मंदिर माँ दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित हैं। माँ को महिषासुरमर्दिनी शक्तिपीठ कहते हैं, साथ ही कामाख्या देवी या शाकंभरी देवी के रूप में सम्मान देते हैं। हमने आपके लिए टेक्स्ट फॉर्मेट में Durga Aarti लेकर आये हैं जिसे पढ़ने मात्रा से ही आपके जीवन की सभी कस्ट दूर हो जायेंगे।

Durga Aarti

दुर्गा जी की आरती: ॐ जय अम्बे गौरी…

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।

तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।

उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।

रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।

सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।

कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।

धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।

मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।

आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।

बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,

भक्तन की दुख हरता । सुख संपति करता ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी ।

मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।

श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।

कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।

Durga Chalisa

आपने ऊपर Durga Aarti पढ़ा, यहां हमने दुर्गा आरती के साथ माँ Durga Chalisa भी लेकर आये हैं। Durga Chalisa का पाठ आपको नयी राह देगा, सभी कष्टों का निवारण होगा। जीवन खुशियों से भर जायेगा, आपको किसी भी प्रकार की गलती नहीं करनी हैं, नियम से माँ की आराधना करें।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

उम्मीद करते है आपको यह सुंदर चालीसा पसंद आया होगा, अपने मित्रों के साथ पाठ करना बिलकुल भी मत भूलियेगा।